हिमालय के ऊंचे-ऊंचे बर्फ से लदे पहाड़ सदियों से भारत की रक्षा के लिए अभेद दीवार बनकर खड़े हैं और भारत के सीमा पार शत्रुओं से निरंतर रक्षा कर रहे हैं। सिर्फ इतना ही नहीं दुस्साहसी पड़ोसियों के साथ युद्धों में हिमालय भारत के लिए कई बार मैदान-ए-जंग भी बना है। दरअसल हजारों फुट ऊंची इन चोटियों पर हमेशा से ही दुश्मन की बुरी नजर रही है। न केवल युद्ध लड़ने के नज़रिये से बल्कि सामान्य जीवनयापन के लिए भी माइनस डिग्री तापमान, मौसम की अनिश्चितता, ऑक्सीजन की कमी और हिमस्खलन जैसी स्थितियां इस क्षेत्र को दुनिया के सबसे दुर्गम स्थानों में से एक बनाता है।
दुश्मन पर सफल स्की-हमला करने योग्य बेहतरीन स्की-योद्धा कैसे बनता है एक सैनिक
सर्दियों में हिमालय की कठोर परिस्थितियों में दुश्मन भी प्रकृति को चुनौती देने से कतराता है और यदि ऐसा कोई करता भी है तो उन्हें मुंह तोड़ जवाब देने के लिए भारतीय सेना हमेशा तैयार रहती है। ऐसे हालात में लड़ने के लिए एक सैनिक के लिए सबसे जरूरी होता है अदम्य साहस और साथ ही कई सालों का प्रशिक्षण एवं तैयारियां। इसी जरूरत को पूरा करता है ‘हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल’। कहते हैं ‘द मोर यू स्वेट इन पीस, द लेस यू ब्लीड इन वॉर’। इसका जीता जागता उदाहरण है हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल जिसे ‘HAWS’ के नाम से भी जाना जाता है। यह भारतीय सेना की कैटेगरी-ए श्रेणी है जो सैनिकों को स्की-योद्धा बनाती है।
‘HAWS’ एकमात्र ऐसी ट्रेनिंग अकादमी जिसे मिला विशिष्ट ऑपरेशनल रोल
1948 से लेकर अब तक पराक्रम और सफलता का समृद्ध इतिहास लिए ‘HAWS’ एकमात्र ऐसी ट्रेनिंग अकादमी है जिसे विशिष्ट ऑपरेशनल रोल भी दिया गया है, जिसका उद्देश्य है ऊंचे पहाड़ों और बर्फीले पर्वतीय इलाकों में युद्ध के लिए भारतीय सेना को हमेशा तैयार रखना। ये वो इलाक़ा है जहां भारत का लगभग 65 प्रतिशत सैन्य दल तैनात होता है।
ये है भारतीय सैनिकों के साहस, दृढ़ संकल्प, तकनीक और प्रशिक्षण की कहानी
‘HAWS’ के कमांडेट जनरल टी. के. आइच कहते हैं ”यहां सैनिकों को ऊंचे पहाड़ों पर लड़ाई के कौशल में निपुण होना होगा। 1700 फुट के ऊपर गुजारा करना होगा जहां ऑक्सीजन और संसाधनों की कमी होगी। हाई एल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल इसी विशेष प्रशिक्षण में काफी अहम भूमिका निभाता है। इसके बलबूते ही हमने कई लड़ाइयों में कामयाबी भी हासिल की है। जैसे 1965 और 1971 में करगिल में और ऑपरेशन मेघदूत में।”
बर्फीले इलाकों में स्की में महारथ हासिल करके दुश्मन को देते हैं चकमा
विंटर वारफेयर ट्रेनिंग का अंतिम लक्ष्य बर्फीले इलाकों में स्की में महारथ हासिल करके दुश्मन को चकमा देकर अचानक हमला कर उसे हैरान कर देना है। सर्दियों में जब पहाड़ बर्फ की सफेद मोटी चादर ओढ़ लेते हैं तो इन बर्फीली स्तह पर सैनिकों का एक कदम भी आगे बढ़ना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इसी के चलते स्की में बेसिक ट्रेनिंग से शुरुआत करके ‘HAWS’ में सैनिकों को एक महत्वपूर्ण स्की ट्रूपर्स में परिवर्तित किया जाता है। इस ट्रेनिंग के बाद रास्ते ऊबड़खाबड़ हो या उनमें चाहे कितनी भी बाधाएं हो उन्हें एक ‘हिमयोद्धा हर हाल में पार करता है फिर चाहे दिन हो या रात।

ये भी है ट्रेनिंग का हिस्सा
बात हो ऐसी प्रतिकूल परिस्थितियों में गुजारा करने की तो जरूरी है कि लड़ाके आधुनिक उपकरणों से लैस हो। उन्हें इलाके की भौगोलिक जानकारी हो। आपात स्थिति में इग्लू जैसे स्थल वो बना सकें और खराब मौसम की चपेट में आए अपने साथियों का बचाव भी कर सकें। कई हफ्तों की ट्रेनिंग का अंत युद्ध अभ्यास से होता है। इस दौरान बर्फिली पहाड़ियों पर सैनिकों द्वारा पेट्रोल और स्की रेड कर दुश्मन के मंसूबों को नाकाम करने की क्षमता का परीक्षण किया जाता है। यह उन्हें एक ऐसे काबिल हिमयोद्धा में बदलता है जो किसी भी मिशन को पूरा कर सके। यही वो शूरवीर योद्धा है जो हमारी पर्वतीय सीमाओं को दुश्मन की बुरी नजरों से महफूज रखते हैं।