उन्नाव, 6 अगस्त 2025: उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले की 15 महिलाएं, जो कभी घर की दहलीज से बाहर कदम नहीं रखती थीं, आज राखियां बनाकर न सिर्फ अपने परिवार का खर्च चला रही हैं, बल्कि सामाजिक बदलाव की मिसाल भी बन रही हैं। बिछिया ब्लॉक के दही चौकी में शुरू हुए एक स्वयं सहायता समूह ने इन महिलाओं की जिंदगी को नई दिशा दी है।
तीन साल पहले शुरू हुए इस छोटे से प्रयास ने आज हजारों राखियों के साथ लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, बनारस, मेरठ और लखीमपुर जैसे शहरों में अपनी पहचान बनाई है। पिछले साल इन महिलाओं ने 1.5 लाख राखियां बनाकर बेचीं और इस साल तीन लाख राखियों का लक्ष्य रखा है। रेखा की अगुवाई में चलने वाला यह समूह जरी, कुंदन, रेजिन और गोबर से बनी पारंपरिक व आधुनिक राखियां तैयार करता है, जिनकी कीमत 5 रुपये से 500 रुपये तक है।
हर धागे में आत्मनिर्भरता की कहानी
अटेसुआ, डीह, चांदपुर, तारगांव, हुसैन नगर, मियागंज और अजगैन जैसे गांवों की ये महिलाएं न केवल राखियां बनाती हैं, बल्कि आर्टिफिशियल ज्वैलरी और दिवाली, करवा चौथ, क्रिसमस, होली जैसे त्योहारों के लिए सजावटी सामान भी तैयार करती हैं। डीह गांव की दीपिका बताती हैं, “पति की 8 हजार रुपये की नौकरी से घर चलाना मुश्किल था। इस समूह से जुड़ने के बाद मैं बच्चों की फीस देती हूं और घर की मरम्मत भी करवाई।” राखी सीजन में हर महिला 10 से 25 हजार रुपये तक कमा लेती है।
सरकारी सहायता और बाजार की रणनीति
सरकार ने इन महिलाओं को बैंक लोन दिलवाकर कच्चा माल खरीदने में मदद की है। ये महिलाएं माउथ पब्लिसिटी, व्हाट्सएप ग्रुप्स और सोशल मीडिया के जरिए अपनी राखियों की बिक्री करती हैं। कुंदन, नग, कार्टून, फ्लावर, मोती, रुद्राक्ष और पर्यावरण के प्रति जागरूकता दिखाते हुए गोबर से बनी राखियां ग्राहकों के बीच खासी लोकप्रिय हैं।
सम्मान और रोजगार की नई पहचान
क्लस्टर अध्यक्ष रेखा कहती हैं, “हमारा मकसद हर गांव की महिला को हुनरमंद बनाना है, ताकि उन्हें मजदूरी के लिए बाहर न जाना पड़े।” यह समूह न केवल रोजगार का जरिया बना है, बल्कि महिला सशक्तिकरण और आत्मनिर्भरता की जीती-जागती मिसाल भी बन गया है। इन महिलाओं की मेहनत और लगन ने साबित कर दिया है कि छोटे से प्रयास से भी बड़ी बदलाव की कहानी लिखी जा सकती है।