तपोवन में ग्लेशियर से हुई घटना ने ये तो बता दिया है कि प्रकृति से छेड़छाड़ करने पर अंजाम क्या हो सकता है। एक छोटे से ग्लेशियर के टुकड़े ने एक बड़े इलाके को तबाह कर दिया। ये ग्लेशियर तो अंटार्कटिका के थ्वाइट्स ग्लेशियर के सामने चुटकी भर भी नहीं है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यदि थ्वाइट्स पिघल गया तो दुनिया में जल प्रलय ला सकता है।
ये 600 मीटर मोटाई वाला और एक लाख 92 हजार वर्गकिलोमीटर क्षेत्रफल वाला थ्वाइट्स करीब-करीब गुजरात के क्षेत्रफल जितना बड़ा है। ये धीरे-धीरे पिघल रहा है। दुनिया भर के वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी चिंता ये है कि इसके पिघलने से जल प्रलय आ सकता है। वैज्ञानिकों का दावा है कि 1 लाख वर्ष पहले पश्चिमी अमेरिका बर्फ की शीट जैसा नहीं था। ये खुला समुद्र था। बाद में ये धीरे-धीरे ये ग्लेशियर में बदल गया। अब वैज्ञानिकों का डर इस बात को लेकर है कि ये फिर से पिघलकर समुद्र में तब्दील न हो जाए। ऐसे में ये पृथ्वी के काफी हिस्से को डूबो देगा।
14 खरब टन से ज्यादा बर्फ पिघल चुकी है:
वैज्ञानिकों ने अशांत पानी का पता लगाया है। यानी खारा और मीठा पानी नीचे की ओर एक साथ बह रहा है। ये प्रक्रिया गर्म पानी को ग्लेशियर की ओर खींचने में मदद करती है। यही डर का विषय है। ग्लेशियर में पिघलकर एक बड़ा छेद हो गया है। अनुमान के मुताबिक करीब 14 खरब टन से भी ज्यादा बर्फ पिघल चुकी है। इस ग्लेशियर पर अमेरिका और ब्रिटेन के वैज्ञानिक संयुक्त रूप से काम कर रहे हैं। इस ग्लेशियर की फोटो क्लिक करना भी बड़ा चैलेंज है। यहां बर्फ का तूफान रहता है। बताया जा रहा है कि अगले डेढ़ सौ साल में ये ग्लेशियर पिघल जाएगा। इससे समुद्र का जल स्तर 3 फीट से भी ज्यादा बढ़ जाएगा। दुनिया भी में समु्द्र के किनारे रहने वाली आबादी पर इसका बड़ा असर होगा।
वैज्ञानिक इसे कयामत लाने वाला ग्लेशियर कहते हैं:
वैज्ञानिकों का मानना है कि इस दुनिया भर में पीने के पानी में इस ग्लेशियर की हिस्सेदारी 90 फीसदी है। इसके पिघलने से समुद्र का जल स्तर तो बढ़ेगा, लेकिन नदियों का जल स्तर घटेगा। पीने के पानी की दिक्कत बढ़गी। इसलिए भू-वैज्ञानिक इसे डूम्सडे ग्लेशियर यानी कयामत वाला ग्लेशियर भी कहते हैं।