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Saturday, December 21, 2024

विपक्षी पार्टियां का कृषि कानून’ को लेकर मोदी सरकार पर हमला:बिल को किसान विरोधी तथा कॉरपोरेट घरानों के फायदे वाला बता रही है

सरकार के साथ कई दौरों की बातचीत और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बावजूद किसान आंदोलन फिलहाल खत्म होता नहीं दिख रहा है।  दूसरी तरफ, विपक्षी पार्टियां लगातार मोदी सरकार पर इस कानून को लेकर हमले कर रही हैं और इस बिल को किसान विरोधी तथा कॉरपोरेट घरानों के फायदे वाला बता रही है। इसके जवाब में केंद्र सरकार का कहना है कि विपक्षी पार्टियां किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर चला रही हैं, जबकि वे खुद सालों से एपीएमसी ऐक्ट को हटाने या संशोधन करने के पक्षधर रही हैं। तो क्या सच में विपक्षी पार्टियां सिर्फ विरोध की खातिर अब अपने ही वादे से पलट रही हैं?

कांग्रेस ने किया था APMC वापस लेने/ संशोधन का वादा
राहुल गांधी नए कृषि कानूनों को ‘अदानी-अंबानी कृषि कानून’ का नाम दे चुके हैं। उनका कहना है कि सरकार ने ये कानून देश के बड़े उद्योगपतियों को नफा पहुंचाने के लिए बनाए हैं। हालांकि, कांग्रेस ने 2019 में हुए लोकसभा चुनाव से पहले जारी अपने  घोषणापत्र में जनता से वादा किया था कि वह अग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी ऐक्ट (APMC) को खत्म कर देगी। 

पंजाब चुनाव से पहले AAP ने भी किया था APMC में संशोधन का वादा
दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने केंद्र के लाए तीनों कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। केजरीवाल का  भी आरोप है कि ये तीनों बिल किसान विरोधी हैं और कुछ बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने के मकसद से लाए गए हैं। बिलों का विरोध करने के लिए उन्होंने दिल्ली विधानसभा का एक दिन का सत्र बुलाया और अपने विधायकों के साथ कृषि कानूनों की कॉपियां फाड़ीं।


हालांकि, 2017 में पंजाब चुनाव के लिए जारी किए आम आदमी पार्टी (AAP) के  घोषणापत्र में यह साफ-साफ लिखा है कि वह APMC ऐक्ट में बदलाव करेगी। ‘FARMERS & FARM LABOURERS’ पॉइंट के तहत यह लिखा गया है कि किसानों को उनके उत्पाद राज्य या राज्य से बाहर अपनी पसंद के खरीदारों और बाजारों में बेचने की आजादी देने के लिए APMC ऐक्ट में संशोधन किया जाएगा। 

इस घोषणापत्र के मुताबिक, ‘मौजूदा एमएसपी प्रणाली से छेड़छाड़ किए बिना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मार्केट तक किसानों की सीधी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एपीएमसी ऐक्ट में संशोधन किया जाएगा।’

क्या कहता है नया कानून?
नए कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी किसानों को अपनी उपज बेच पाएंगे। लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिए APMC मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है। इसके जरिए बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है। बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं। 

किसानों को क्या डर है?
किसान और व्यापारियों को इन विधेयकों से APMC मंडियां खत्म होने की आशंका है। नए कृषि बिल के मुताबिक, किसान अब एपीएमसी मंडियों के बाहर किसी को भी अपनी उपज बेच सकता है, जिस पर कोई शुल्क नहीं लगेगा, जबकि एपीएमसी मंडियों में कृषि उत्पादों की खरीद पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मंडी शुल्क व अन्य उपकर हैं। इसके चलते आढ़तियों और मंडी के कारोबारियों को डर है कि जब मंडी के बाहर बिना शुल्क का कारोबार होगा तो कोई मंडी आना नहीं चाहेगा। किसानों को यह भी डर है नए कानून के बाद एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद सरकार बंद कर देगी।

इस घोषणापत्र के मुताबिक, ‘मौजूदा एमएसपी प्रणाली से छेड़छाड़ किए बिना राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मार्केट तक किसानों की सीधी पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एपीएमसी ऐक्ट में संशोधन किया जाएगा।’

क्या कहता है नया कानून?
नए कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी किसानों को अपनी उपज बेच पाएंगे। लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिए APMC मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है। इसके जरिए बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है। बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं। 

किसानों को क्या डर है?
किसान और व्यापारियों को इन विधेयकों से APMC मंडियां खत्म होने की आशंका है। नए कृषि बिल के मुताबिक, किसान अब एपीएमसी मंडियों के बाहर किसी को भी अपनी उपज बेच सकता है, जिस पर कोई शुल्क नहीं लगेगा, जबकि एपीएमसी मंडियों में कृषि उत्पादों की खरीद पर विभिन्न राज्यों में अलग-अलग मंडी शुल्क व अन्य उपकर हैं। इसके चलते आढ़तियों और मंडी के कारोबारियों को डर है कि जब मंडी के बाहर बिना शुल्क का कारोबार होगा तो कोई मंडी आना नहीं चाहेगा। किसानों को यह भी डर है नए कानून के बाद एमएसपी यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य पर फसलों की खरीद सरकार बंद कर देगी।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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