बिहार में विधानसभा चुनाव के बाद अब राज्यसभा उपचुनाव को लेकर सियासी सरगर्मियां तेज हैं। बिहार में लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक और दिवंगत पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई राज्यसभा सीट पर लोजपा ने पीएम मोदी को खत लिखकर उनकी पत्नी रीना पासवान को मौका देने का आग्रह किया था। मगर इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने सुशील कुमार मोदी के नाम पर मुहर लगा दी। इस राजनीतिक हालात में राजद ने बड़ा सियासी दांव खेला और उसने लोजपा की ओर से रीना देवी को प्रत्याशी बनाए जाने पर समर्थन देने की बात कह दी। हालांकि, लोजपा ने अपनी ओर से स्पष्ट कर दिया है कि अब राज्यसभा उपचुनाव में उनकी ओर से कोई उम्मीदवार नहीं होगा।
रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई राज्यसभा सीट पर आज भारतीय जनता पार्टी के नेता सुशील मोदी आज अपना नामांकन दाखिल करेंगे। पीएम मोदी से रीना देवी को प्रत्याशी बनाने की मांग वाली खबर आने के बाद राजद प्रवक्ता शक्ति सिंह यादव ने कहा था कि अगर रीना पासवान चुनाव मैदान में आती हैं तो राजद बिना शर्त उनका समर्थन करेगा। मगर एक दिसंबर यानी मंगलवार को लोजपा ने चिराग पासवान की मां रीना पासवान को राजद की ओर से राज्यसभा सीट के लिए उम्मीदवार बनने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। लोजपा ने इस प्रस्ताव के लिए राजद का आभार तो व्यक्त किया, मगर वह स्वीकार करने को तैयार नहीं हुई। तो अब यहां समझना यह जरूरी है कि आखिर लोजपा ने राजद के प्रस्ताव को क्यों नहीं स्वीकारा?
लोजपा के इस कदम को समझने के लिए सबसे पहले बिहार में इस साल के विधानसभा चुनाव के नतीजों पर गौर करना होगा। बिहार विधान सभा में 243 विधायक हैं और इसके आधार पर एक राज्यसभा की एक सीट के लिए 41 वोट चाहिए। बिहार चुनाव में जो नतीजे आए हैं, उससे राज्यसभा चुनाव का अंकगणिता एनडीए के पक्ष में दिख रहा है। बिहार में एनडीए के पास जहां 126 विधायक हैं, वहीं महागठबंधन के पास 110 विधायक हैं। इसके अलावा, ओवैसी की पार्टी और अन्य को मिलाकर अन्य सात विधायक हैं। ऐसे में अगर लोजपा राजद के प्रस्ताव को स्वीकार कर भाजपा के खिलाफ में अपने उम्मीदवार को मैदान में उतारती भी तो हारने का जोखिम ज्यादा होता। वहीं, अगर राजद भी अपने उम्मीदवार उतारती तो उसको कोई फायदा नहीं होता।
इसके अलावा, एक और वजह यह समझ आ रही है कि लोजपा ने अब तक भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ न तो ऐसी कोई बयानबाजी की है और न ही ऐसी कोई गतिविधि, जिससे उनके एनडीए से निकल जाने के संकेत मिले। चिराग पासवान ने चुनाव से पहले ही खुद को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का हनुमान बताया था और अब राज्यसभा चुनाव के लिए लोजपा की ओर से कोई प्रत्याशी न उतारने का ऐलान कर फिर से साबित किया है कि लोजपा का भाजपा से कोई विरोध नहीं है। लोजपा के इस दांव से यह भी समझ आता है कि चिराग पासवान केंद्र में एनडीए का हिस्सा बने रहेंगे। यही वजह है कि मंगलवार को लोजपा ने ट्वीट किया, ‘राजद के कई साथी अपना समर्थन इस सीट पर लोजपा प्रत्याशी के लिए करने की बात की है।उनके समर्थन के लिए पार्टी आभार व्यक्त करती है।इस राज्य सभा सीट पर लोजपा का कोई भी व्यक्ति चुनाव नहीं लड़ना चाहता है।’
वहीं, राजद के बिना शर्त के समर्थन के पीछे के राजनीतिक मंशे की बात करें तो तेजस्वी की अगुवाई वाली राजद लोजपा को समर्थन देकर अपना राजनीतिक हित साधना चाहती थी। राजनीतिक पंडितों का मानना है कि जिस तरह से लोजपा की विधानसभा चुनाव में करारी हार हुई है, उससे पार्टी अलग-थलग पड़ी हुई है। राजद इस मौके का फायदा उठाना चाहती है और लोजपा को भाजपा से दूर करना चाहती है। इसके अलावा, राजद के इस प्रस्ताव को राजनीतिक विश्लेषक चिराग का कम और तेजस्वी के अधिक सियासी फायदे के तौर पर देख रहे हैं।
गौरतलब है कि लोजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान के निधन से खाली हुई राज्यसभा की सीट पर उनकी पत्नी रीना पासवान को मौका देने का आग्रह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से किया था। इसके लिए लोजपा के मीडिया प्रभारी कृष्णा सिंह कल्लू ने पीएम को पत्र भी लिखा था। इसके बाद भी बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में लोजपा की मात्र एक सीट पर जीत और बदले राजनीतिक हालात को देखते हुए भाजपा ने इस सीट पर बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री सुशील मोदी को प्रत्याशी बनाए जाने की घोषणा की थी।