वाशिंगटन, (एजेंसी )। ‘तीसरी बार में भाग्यशाली’ मुहावरा अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन पर एकदम सटीक बैठता है। बाइडन अमेरिकी राजनीति में पांच दशकों से सक्रिय रहे हैं। इस दौरान उन्होंने युवा सीनेटर से देश के सबसे उम्रदराज राष्ट्रपति तक का सफर तय किया है। बाइडन सिर्फ 29 वर्ष की उम्र में पहली बार सीनेटर बने थे, जबकि 77 साल की उम्र में उन्होंने राष्ट्रपति चुनाव जीता है। यह भी एक संयोग ही है कि 48 साल पहले सात नवंबर को ही वे पहली बार सीनेटर बने थे।
1988 और 2008 में कोशिश हो गई थी नाकाम
मंगलवार के चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप को हराने वाले बाइडन को 1988 और 2008 में राष्ट्रपति बनने के प्रयास में नाकामी हाथ लगी थी। डेलावेयर के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ बाइडेन ने अपने बचपन में राष्ट्रपति बनने का सपना देखा था। राष्ट्रपति बनने का उनका तीसरा प्रयास तब सफल हुआ, जब उन्होंने 29 फरवरी को साउथ कैरोलिना के डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रारंभिक चुनाव में अपने ज्यादातर प्रतिद्वंद्वियों को रेस से बाहर कर दिया। इससे अमेरिकी इतिहास में किसी राजनीतिज्ञ की सबसे नाटकीय वापसी का रास्ता साफ हुआ। 120 साल में बाइडन को सबसे ज्यादा वोट मिले हैं। वह भी ऐसे समय में जब अमेरिका कोरोना से बुरी तरह से जूझ रहा है।
सीनेट के लिए छह बार निर्वाचित
बाइडेन सीनेट के लिए छह बार निर्वाचित हुए। वे 1972 में पहली बार यहां से 29 वर्ष की उम्र में अमेरिकी सीनेट के लिए निर्वाचित हुए। वह सीनेट के लिए निर्वाचित होने वाले पांचवें युवा सीनेटर थे। इसी साल उनके साथ एक भयानक हादसा भी हुआ। उनकी पत्नी नीलिया और नवजात बेटी नाओमी की सड़क हादसे में मौत हो गई जबकि बेटे ब्यू और हंटर भी इस हादसे में बुरी तरह घायल हो गए थे। यह हादसा तब हुआ जब उनकी पत्नी और बच्चे क्रिसमस ट्री लेने जा रहे थे। इस हादसे के बाद कुछ समय तक के लिए बाइडन में सभी तरह की महत्वाकांक्षाएं खत्म हो गई थीं।
दादा से ली थी सियासत की सीख
बाइडन 20 नवंबर, 1942 को पेंसिलवेनिया के स्क्रैटन में पैदा हुए थे। यह वह समय था जब भारत में ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’ आंदोलन चल रहा था। ‘प्रॉमिसेज टू कीप’ नाम के अपने संस्मरण में बाइडन ने लिखा है कि उन्हें राजनीति की शिक्षा अपने दादा से मिली थी। पिता की नौकरी के चलते दस वर्ष की अवस्था में उन्हें स्क्रैटन छोड़ना पड़ा। इसके बाद उन्होंने डेलावेयर को अपना दूसरा घर बनाया। यहां पर रहकर वह ना केवल एक राजनेता के तौर पर उभरे बल्कि नीति-निर्धारक मामलों के विशेषज्ञ भी बने।
बेटे की मौत का लगा था गहरा सदमा
बाइडन के बेटे की जब मौत हुई थी तब बतौर उपराष्ट्रपति उनका दूसरा कार्यकाल था। कहते हैं कि बेटे की मौत का उन्हें गहरा सदमा लगा था… इसके चलते वर्ष 2015 में उन्होंने अगले वर्ष होने वाले राष्ट्रपति चुनाव की रेस से अपना नाम तक वापस ले लिया था। उन्होंने राष्ट्रपति बनने के लिए सबसे पहले 1980 में कोशिश की। बाद में साल 1988 में भी कोशिश की लेकिन साहित्य चोरी के विवादों में घिर गए। साल 2008 में उन्हें ओबामा के कार्यकाल में मौका मिला। वर्ष 2015 में वह राष्ट्रपति चुनाव की रेस से बाहर हो गए थे।
भारत से अच्छे संबंधों के पैरोकार
बाइडन भारत के साथ अच्छे संबंधों के पैरोकार रहे हैं। डेलावेयर से सीनेटर और बराक ओबामा के उपराष्ट्रपति के रूप में उन्होंने मजबूत भारत-अमेरिका संबंधों का समर्थन किया। भारत-अमेरिका के बीच परमाणु सहयोग संधि में भी उनकी अहम भूमिका रही। बड़ी संख्या में भारतीय मूल के अमेरिकी उनके करीबी सहयोगियों में शामिल हैं। इसी साल जुलाई में एक कार्यक्रम के दौरान बाइडन ने कहा था कि भारत और अमेरिका स्वाभाविक साझीदार हैं। भारत के साथ रणनीतिक सहयोग हमारी सुरक्षा के लिए जरूरी और महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा, मुझे इस बात का गर्व है कि भारत के साथ परमाणु संधि को कांग्रेस से मंजूरी दिलाने में मैंने अहम भूमिका निभाई
बाइडन के बारे में यह भी जानिए
- स्कूल में फुटबॉल के अच्छे खिलाड़ी रहे। उनके खाते में 19 यादगार पास दर्ज हैं
- वियतनाम युद्ध के दौरान नौकरी के लिए आवेदन दिया लेकिन अस्थमा की वजह से मेडिकल में फेल हो गए
- न सिगरेट पीते हैं और न ही शराब
- उनका मशहूर जुमला है-आइ एम जो बाइडन, आइ लव आइसक्रीम
- पंसदीदा फिल्म शेरियट ऑफ फायर
- इराक युद्ध के पक्ष में वोटिंग की थी, हालांकि बाद में इसे मानवीय भूल बताया था
- बचपन में हकलाते थे, जिसकी वजह से वे कक्षा में हीन भावना से भी ग्रसित हुए