[10:56, 18/11/2020] Anita Mam: राजनीति और अवसरवाद का नाता तो कई जन्मों का रहा है और देश में कोई भी चुनाव हो, एक न एक दल अवसर को भुनाने आगे आ ही जाता है। ऐसा ही कुछ जम्मू-कश्मीर में जिला परिषद चुनाव में भी देखने को मिल रहा है। जी हां चुनाव के ठीक पहले गुपकार गठबंधन का सक्रीय होना इस बात का सूचक है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि जम्मू-कश्मीर की जनता किसे चुनती है, विकास की राजनीति को या फिर 370 को वापस लागू करने वाले उस समूह का, जो घाटी को वापस दशकों पीछे फेंकना चाहता है।
जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक उतार-चढ़ाव पर वरिष्ठ पत्रकार व सप्ताहिक पत्रिका ऑर्गनाइज़र के संपादक प्रफुल केतकर कहते हैं कि इस गठबंधन को सोशल मीडिया ने गुपकार गैंग नाम दिया है। इसकी अवसरवादिता उसी क्षण समझ में आ गई, जब उन्होंने पंचायत चुनावों का बहिष्कार किया। ज़रा सोचिए, पंचायत लोकतंत्र का एक मजबूत अंग है और आपने उसका बहिष्कार किया और अब डीडीसी के चुनाव में लड़ने आ गये। यदि आप 370 को लेकर इतने आक्रामक रहे कि पंचायत चुनाव का बहिष्कार कर दिया, आज ऐसी कौन सी परिस्थिति आ गई है, जो चुनाव का हिस्सा बन रहे हैं। यहां तक कांग्रेस जैसे बड़े दल ने भी गुपकार संगठन का समर्थन किया है।
प्रसार भारती से बातचीत में प्रफुल केतकर ने कहा, “ग्राउंउ पर जो बदलने वाली स्थिति है, चाहे वो कानून व्यवस्था को लेकर हो, चाहे रोजगार को लेकर हो, इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, आदि हों, अवसरवादी दलों के बारे में कश्मीर के लोग भलिभांति परिचित हैं। अब 35ए की बात करें तो वह तो असंवैधानिक तरीके से आया हुआ एक ऑर्डर था, जिसको संसद ने कभी भी मान्यता नहीं थी, लेकिन फिर भी यह समूह 35 ए का राग अलाप रहे हैं। सच पूछिए तो 35 ए में मिलने वाली प्रिविलेज आम लोगों के लिए नहीं थीं वो इन नेताओं ने अपने लिए लागू किया था, ताकि वो उसका लाभ उठा सकें। 2014 में चुनाव की हार के बाद जो इंट्रोस्पेक्शन अपेक्षित था, जोकि नहीं हुआ।
भ्रष्टाचार में नंबर-1 हो गया था कश्मीर
जम्मू-कश्मीर मामलों की विशेषज्ञ व वरिष्ठ पत्रकार आरती टिक्कू का कहना है कि कांग्रेस पार्टी जो गुपकार का समर्थन कर रही है, उसे यह समझना चाहिए कि पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने भी जब अनुच्छेद 370 दिया तब उन्हें भी अपनी गलती का अहसास हुआ। उनको लगा कि उन्होंने शेख अब्दुल्लाह को सारी शक्तियां दे दीं। उस दौरान लोगों की जवाबदेही तय नहीं की गई। इसके कारण भ्रष्टाचार बढ़ता गया। एक समय आया जब करप्शन का सर्वे करने वाली संस्था ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रैंकिंग में जम्मू-कश्मीर शीर्ष स्थानों में से एक बन गया। उसका अर्थ यही है कि भ्रष्टाचार उन लोगों के हाथ में था, जो इतने वर्षों तक जम्मू-कश्मीर पर राज करते आये। 370 हटने के पहले ये लोग यह निर्णय लेते थे, कि पैसा कहां जाएगा या जमीन किसको देनी है।
उन्होंने कहा, “अगर आप श्रीनगर के अलावा किसी भी शहर में चले जाएं, आप देख सकते हैं कि वो जिले कितने पिछड़े हुए हैं। चूंकि जम्मू-कश्मीर का स्वयं का रेवेन्यू खास नहीं था, तो उनकी 90 प्रतिशत फंडिंग केंद्र सरकार करती थी। वो पैसा कहां जाता था, उसकी कोई जवाबदेही नहीं थी, कोई पारदर्शिता नहीं थी। कुछ चुनिंदा लोग ही 70 साल तक यहां राज करते आये।”
वोट उसी को जो डोगरी, कश्मीरी बोलेगा, पाकिस्तान की भाषा नहीं
आरती टिक्कू ने आगे कहा, “महाराजा हरि सिंह को जब कश्मीर से निकाला गया, तो उसके बाद महाराजा शेख अब्दुल्लाह बने। उनके बेटे, फारूख अब्दुल्लाह, उनके बेटे उमर अब्दुल्लाह उसी तरीके से महबूबा मुफ्ती के पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद ने राज किया, अब उनकी बेटी भी आगे आ रही हैं। पिछले 70 वर्षों में इनको केंद्र सरकार की ओर से लग्ज़री प्रदान की गई, जिसकी इनको आदत हो गई है। लेकिन अब लोगों को यह समझ आ चुका है कि 70 साल में इन परिवारों ने घाटी को कितना खोखला किया।”
उन्होंने कहा कि आने वाले जिला परिषद के चुनावों में निश्चित रूप से उन्हीं को जीत मिलेगी, जो लोग डोगरी या कश्मीरी बोलेंगे, पाकिस्तान की भाषा बोलने वाले या चीन से मदद मांगने वाले लोगों को जनता सपोर्ट नहीं करेगी।