नई दिल्ली: किसान आंदोलन का आज 21वां दिन है। ना किसान हट नहीं रहे और न ही सरकार झुक रही है। किसानों और सरकार के बीच कृषि कानून के मुद्दे पर गतिरोध बरकरार है। कोरोना का खतरा और गिरते पारे के बीच उनकी बड़ी लड़ाई जारी है। नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर बड़ी तादाद में किसान 26 नवंबर से दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हैं। किसान सिंधु, टिकरी, पलवल, गाजीपुर सहित कई नाकों पर डटे हैं। नए कृषि कानूनों के खिलाफ तकरीबन तीन सप्ताह से दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर डटे हैं और धरना- प्रदर्शन कर रहे हैं।
किसानों ने आज को दिल्ली नोएडा को जोड़ने वाले चिल्ला बॉर्डर को ब्लॉक करने का ऐलान किया है। किसान संगठनों ने कहा कि सरकार बाहर से आने वाले लोगों को घुसने नहीं दे रही है। किसान आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए आना चाहते हैं, लेकिन सरकार उन्हें रोक रही है। ये सरकार किसानों की बात नहीं करती है, बस घुमाती है।
इसके साथ आगे की रणनीति पर चर्चा के लिए किसान संगठनों के नेता आज अहम बैठक करने वाले हैं। किसान आज आंदोलन की आगे की रणनीति तय करेंगे। आज किसानों की बैठक के बाद आंदोलन तेज करने का फैसला लिया जा सकता है। किसान नेता आंदोलन जारी रखने के साथ साथ सरकार से बातचीत की अपील भी कर रहे हैं।
उधर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मंगलवार को गुजरात के दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने कच्छ की धरती से विपक्ष पर निशाना साधा। पीएम मोदी ने कहा कि दिल्ली के आसपास आजकल किसानों को डराने की साजिश चल रही है। क्या अगर कोई आपसे दूध लेने का कॉन्ट्रैक्ट करता है, तो क्या भैंस लेकर चला जाता है? जैसी आजादी पशुपालकों को मिल रही है, वैसी ही आजादी हम किसानों को दे रहे हैं। पीएम ने कहा कि कई वर्ष से किसान संगठन इसकी मांग करते थे, विपक्ष आज किसानों को गुमराह कर रहा है लेकिन अपनी सरकार के वक्त ऐसी ही बातें करता था।
गौरतलब है कि सरकार और किसानों के बीच इस मसले को सुलझाने के लिए कई दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन अबतक कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका है। सरकार जहां कृषि कानून में संशोधन की बात कर रही है, वहीं किसान कानून को रद्द करने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। सरकार के साथ कई दौर की बातचीत बेनतीजा रहने के बाद किसानों ने सरकार को अपने आंदोलन को और तेज करने की चेतावनी दी है।
सराकार से कई दौर की वार्ता के बाद भी किसान पीछे हटने को तैयार नहीं है। किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस किए जाने पर मांग पर अड़े हुए हैं। हालांकि इस बीच किसान संगठनों का कहना है कि सरकार से बातचीत के दरवाजे खुले हैं, लेकिन कानूनों वापसी के अलावा उन्हें कुछ भी मंजूर नहीं है।