14 दिसंबर को सोमवती अमावस्या मनाई जाएगी. हिंदू धर्म में सोमवती अमावस्या का खास महत्व है. इस दिन भगवान शिवजी की पूजा की जाती है. वहीं सोमवती अमावस्या के दिन पवित्र नदियों में स्नान करने का विशेष महत्व है.
पुराणों के अनुसार सोमवती अमावस्या पर स्नान-दान करने की भी परंपरा है. जो लोग गंगा स्नान करने नहीं जा पाते, वे किसी भी नदी या सरोवर तट आदि में स्नान कर सकते हैं और शिव-पार्वती और तुलसीजी का पूजन कर सोमवती अमावस्या का पुण्य ले सकते है. बताया जाता है कि पांडवों के संपूर्ण जीवन में सोमवती अमावस्या नहीं आई. वह सोमवती अमावस्या के लिए तरसते ही रह गए थे.
सोमवती अमावस्या का मुहूर्त
अमावस्या तिथि- 14 दिसंबर (सोमवार) को रात्रि 9 बजकर 47 मिनट तक रहेगी.
सुहागिनों के लिए है खास-
सोमवती अमावस्या का व्रत विवाहित स्त्रियां अपने सुहाग की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं. इस दिन सुहागिनें व्रत रखकर पीपल के वृक्ष की दूध, पुष्प, अक्षत, चन्दन एवं अगरबत्ती से पूजा-अर्चना करती हैं और उसके चारों ओर 108 धागा लपेटकर परिक्रमा करती हैं और भगवान शिव से प्रार्थना करती हैं कि पति की उम्र लंबी हो. . मान्यता है कि सोमवती अमावस्या का व्रत करने से सुहागिन महिलाओं को भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा मिलती है.
पूजा विधि
1. आज के स्नान करके भगवान शिव और पार्वती की पूजा करनी चाहिए.
2. सुहागन महिलाओं को माता पार्वती की पूजा करने के बाद सुहाग सामग्री बांटनी चाहिए.
3. अमावस्या के दिन पीपल और तुलसी के पेड़ की पूजा करनी चाहिए.
4. प्रसाद में मालपुआ का भोग लगाना चाहिए.
सोमवती अमावस्या की कथा-
गरीब ब्राह्मण की एक कन्या थी जो कि बहुत ही प्रतिभावान एवं सर्वगुण संपन्न थी. जब वह विवाह के योग्य हो गई तो ब्राह्मण ने उसके लिए वर खोजना शुरू किया. कई योग्य वर मिले परन्तु गरीबी के कारण विवाह की बात नहीं बनती. एक दिन ब्राह्मण के घर एक साधु आये. कन्या के सेवाभाव देख साधु बहुत प्रसन्न हुए और दीर्घायु होने का आशर्वाद दिया. ब्राह्मण के पूंछने पर साधु ने कन्या के हाथ में विवाह की रेखा न होने की बात कही. इसका उपाय पूछने पर साधु ने बताया कि पड़ोस के गांव में सोना नामक धोबिन का परिवार है. कन्या यदि उसकी सेवा करके उससे उसका सुहाग मांग ले तो उसका विवाह संभव है.
साधु देवता की बात सुनकर कन्या ने धोबिन की सेवा करने का मन ही मन प्रण किया. उसके अगले दिन से कन्या रोज सुबह उठकर धोबिन के घर का सारा काम कर आती थी. एक दिन धोबिन ने बहु से कहा कि तू कितनी अच्छी है कि घर का सारा काम कर लेती है. तब बहु ने कहा कि वह तो सोती ही रहती है. इस पर दोनों हैरान हुई कि कौन सारा काम कर जाता है. दोनों अगले दिन सुबह की प्रतीक्षा करने लगी. तभी उसने देखा कि एक कन्या आती है और सारा काम करने लगती है. तो धोबिन ने उसे रोक कर इसका कारण पूछा तो कन्या सोना धोबिन के पैरों पर गिर पड़ी और रो–रोकर अपना दुःख सुनाया. धोबिन उसकी बात सुनकर अपना सुहाग देने को तैयार हो गई.
अगले दिन सोमवती अमावस्या का दिन था. सोना को पता था कि सुहाग देने पर उसके पति का देहांत हो जाएगा. लेकिन उसने इसकी परवाह किये बगैर व्रत करके कन्या के घर गई और अपना सिंदूर कन्या की मांग में लगा दिया. उधर सोना धोबिन के पति का देहांत हो गया. लौटते समय रास्ते में पीपल के वृक्ष की पूजा अर्चना की तथा 108 बार परिक्रमा किया. घर लौटी तो देखा कि उसका पति जीवित हो गया है. उसने ईश्वर को कोटि- कोटि धन्यवाद दिया. तब से यह मान्यता है कि सोमवती अमावस्या को पीपल के वृक्ष की पूजा करने से सुहाग की उम्र लंबी होती है.