इस साल 26 जनवरी को पौष मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत किया जाएगा। इसे भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है। प्रदोष व्रत के दिन भगवान शिव की आराधना की जाती है। भौम प्रदोष का व्रत करने और इस दिन की कथा श्रवण करने वाले पर भगवान शिव की विशेष कृपा बनी रहती है और उन्हें सभी कष्टों से भी मुक्ति भी मिल जाती है। भगवान महादेव की आराधना के लिए किये जाने वाले भौम प्रदोष व्रत के लिए सुबह के समय स्नान के बाद भगवान भोलेनाथ की पूजा करनी चाहिए। पूजा में सर्वप्रथम भगवान शिव का गंगाजल से अभिषेक करना चाहिए। इसके बाद उन्हें शिवजी को भांग, धतूरा, सफेद चंदन, फल, फूल, अक्षत, गाय का दूध अर्पण करना चाहिए। भगवान शिव की पूजा करते हुए इस बात विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उन्हें तुलसी बिल्कुल न चढ़ायें। इसके बाद शिव मंत्रों का जाप करना चाहिए। शिव मंत्र के जाप के बाद चालीसा, कथा और अंत में आरती अवश्य ही करनी चाहिए। भौम प्रदोष व्रत करने वाले को यह कथा जरूर सुननी चाहिए।
एक समय एक स्थान पर एक वृद्ध महिला रहती थी। उसका एक बेटा था। वह वृद्धा भगवान हनुमान की भक्त थी। वृद्धा हमेशा हनुमान की पूजा करती थी। मंगलवार को वह हनुमान की विशेष पूजा करती थी। एक बार भगवान हनुमान ने उस वृद्धा की परीक्षा लेने का निश्चय किया। वे एक साधु का रूप धारण कर वृद्धा के घर पहुंचे। उन्होंने वृद्धा को आवाज लगायी और कहा कोई है हनुमान भक्त, जो उनकी इच्छा को पूर्ण कर सकता है। उनकी आवाज उस वृद्धा के कान में पड़ी, तो वह जल्दी से बाहर आई। उसने साधु को प्रणाम किया और कहा कि आप अपनी इच्छा बताएं। इस पर भगवान ने कहा कि उनको भूख लगी है, वे भोजन करना चाहते हैं इसके लिए थोड़ी जमीन लीप दो। इस पर उस वृद्ध महिला ने साधु से कहा कि आप जमीन लीपने के अतिरिक्त कोई और काम कहें, उसे वह पूरा कर देंगी। साधु ने उससे अपनी बातों को पूरा करने के लिए वचन लिया।
तब उन्होंने कहा कि अपने बेटे की पीठ पर आग जला दो। उस पर ही वे अपने लिए भोजन बनाएंगे। भगवान हनुमान की बात सुनकर वह वृद्धा परेशान हो गई। वह करे भी तो क्या करे। उसने हनुमान को वचन दिया था। उसने आखिरकार बेटे को बुलाया और उसे भगवान को सौंप दिया। हनुमान ने उसके बेटे को जमीन पर लिटा दिया और वृद्धा से उसकी पीठ पर आग जलवा दी। वह वृद्धा आग जलाकर वहां से चली गई। कुछ देर बाद भगवान ने उस वृद्ध महिला को बुलाया और उनका भोजन बन गया है। अपने बेटे को बुलाओ ताकि वह भी भोग लगा ले। इस पर वृद्धा ने कहा कि आप ऐसा कहकर और कष्ट न दें। लेकिन भगवान हनुमान ने फिर कहा कि वह अपने पुत्र को बुलाए। तब उसने अपने बेटे को भोजन के लिए पुकारा। वह अपनी मां के पास आ गया। वृद्ध महिला अपने पुत्र को जीवित देखकर उस साधु के चरणों में नतमस्तक हो गई। तब भगवान हनुमान ने अपने रूप में आकर उन्हें दर्शन दिया और उसे आशीष देकर चले गए।