कोविड़ -19 ने भारतीय महिलाओं को आर्थिक , सामाजिक , स्वास्थय , मनोवैज्ञानिक ,परिवहन, पर्यावरण पारिवारिक ऱिश्तों जीवन शैली में बदलाव आदि कई प्रकार से प्रभावित किया । सबसे ज्यादा 74 फीसदी महिलाएं आर्थिक कारणों से प्रभावित हुईं । उन्हें तनाव और अवसाद हुआ तो कुछ महिलाओं का
जीवन के प्रति उनका नज़रिया ही बदल गया । उनमें आत्म विश्वास पैदा हुआ स्वालंबन बढ़ा , सामाजिक सरोकार, परोपकार और मनुष्यता की भावना बढ़ी , प्रकृति पर्यावरण के प्रति चिंता बढ़ी , समाज से जुड़ाव बढ़ा और उन्होनें सीखा की जितनी चादर हो उतने ही पैर पसारे जाएं और बचत करना भी सीखा कोराना के कठिन काल और विषम परिस्थितियों में भारतीय महिलाओं ने जिम्मेदारी से अपने परिवारों
को संभाला और उनकी खुशियों का ध्यान रखा । घरेलु हिंसा के मामलों में धैर्य और सहनशक्ति से विकट समय निकाला । कुछ परिवारों ने केवल नमक चावल खा कर गुज़ारा किया तो कुछ आदिवासी परिवारों ने पत्ते खा कर अपना पेट भरा ।
ये कुछ कहानियां हैं उस सर्वे की जो कोविड लॉक डॉऊन के दौरान राष्ट्र सेविका समिती के तरूणी विभाग ने भारत की चारों दिशाओं में और समाज के हर वर्ग में किया । 28 प्रांतों के , 567 जिलों में , 12000 टीनएजर्स लड़कियों ने लगभग 17000 हज़ार महिलाओं युवतियों और किशोरियों से मुलाकात की । सर्वे की प्रशनावली के अनुसार सवाल पूछे । अखिल भारतीय तरुणी प्रमुख भाग्यश्री साठे ने बताया कि 25 जून से 4 जुलाई तक देश भर में व्यापक सर्वेक्षण किया गया और इस सर्वेक्षण के माध्यम से जो विश्लेषण तैयार हुआ है वह पुस्तक के रूप में संकलित किया गया। मंगलवार को सर्वेक्षण पुस्तक का वर्चुअल विमोचन किया गया । इस अवसर पर राष्ट्र सेविका समिति की अखिल भारतीय सह कार्यवाहिका सुश्री सीता गायत्री अन्नदानम ने कहा इस सर्वे ने देश के युवा वर्ग में समाज के लिए कुछ करना है का भाव जाग्रत किया । उन्हें समाज के दुख दर्द को अनुभव करने का अवसर मिला । महिलाओं की शक्ति पहचानने का अवसर मिला ।
युवतियों ने इस करोना समस्या को भी चुनौती की तरह से लिया है और इस सर्वेक्षण में उन्होंने यह बात खुलकर कही कि यह हमारे लिए कोरोना कोई समस्या नहीं थी।युवा वर्ग ने भी पैसा बचाने की पारपंरिक जीवन शैली के बारे में सीखा । मोटी सैलरी वाली नौकरी भी जा सकती है ये उन्होनें पहली बार अनुभव किया और बचत की आदत डाली । कुछ और सकारात्मक बातें भी अनुभव की गई जैसे करोना काल के समय में पूरे परिवार के साथ
रहने का मौका मिला है लोग वापस अपनी संस्कृति से जुड़े हैं ।
लोगों ने योग ,प्राणायाम कर व्यवस्थित दिनचर्या जीने का प्रयास किया ।
तरूणियों की टोलियां शहरी ग्रामीण , सेवा बस्तियों ( झुग्गी झोंपड़ी बस्तियों )
और वनवासी क्षेत्रों में गयीं और उनसे सवाल पूछे । सर्वे से बहुत चौकानें वाले तथ्य भी सामने आए । सर्वे में आर्थिक रूप से अति पिछड़े वर्ग की युवतियां भी टीम का हिस्सा बनीं । और सर्वे करते करते उनकी धारणा ही बदल गयी उन्होनें देखा कि लोग उनसे से भी अधिक विषम परिस्थितियों में जी रहे हैं । उन्होनें उन परिवारों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए प्रशिक्षण दिया ।
सर्वे में एक बात यह भी सामने आयी कि समाज का मद्यम वर्ग अब भी अपना दुख सुख किसी के सामने नहीं कहना चाहता । कितनी भी आर्थिक मुशकिलों हों वो बाहर से खुश और सब कुछ सामान्य दिखाने की कोशिश करता है । जबकि निचला तबका अपने आर्थिक हालात पर खुल कर चर्चा करता है । महिलाओं को जहां राशन , दवाई, किराए, कपड़े लत्ते ,बच्चों की फीस और परिवहन को लेकर समस्याओं का सामना करना पड़ा तो युवतियों को स्वास्थय खास कर मासिक धर्म के समय और पढ़ाई को लेकर बहुत दिक्कतें झेलनी पड़ीं । उनके मानसिक स्वास्थय पर भी प्रतिकूल असर पड़ा । अपने परिवारों में भी किसी से वे अपनी समस्याएं साझा नहीं कर पायीं । पढ़ाई चूंकि ऑन लाईन हो गयी थी इसलिए सबके पास न तो स्मार्ट फोन थे न लैप टॉप न कंप्यूटर । यदि थे भी तो एक परिवार में अमूनन एक ही कंप्यूटर या स्मार्ट फोन था । शिक्षा को लेकर युवतियां बहुत तनाव में आ गयीं थीं । एक परिवार ने तो ऑन लाईन क्लास के लिए अपनी तीन बकरियां बेच कर स्मार्ट फोन खरीदा ।
उच्च संपन्न वर्ग की महिलाओं को आर्थिक , परिवहन आदि की परेशानी तो नहीं हुईं लेकिन घर के कामकाज को लेकर लॉक डॉऊन में बहुत परेशानी हुई । क्योंकि काम वाली बाई नहीं आ रही थी । लेकिन फिर धीरे धीरे उनकी मानसिकता बदलती गयी । उन्होनें सोचा जिम नहीं जाना तो घर के कामकाज को ही जिम समझ लो । कईं महिलाओं बताया कि उनका वजन कम हुआ और घर को संभालने देखने का अवसर भी मिला । अनेक महिलाओं ने बताया कि उनके बच्चे लॉक डॉऊन में आत्मनिर्भर बने अपना काम खुद करना सीखा घर के काम में मदद करना अपना कमरा साफ करना अपने बर्तन खुद साफ करना आदि । एक मध्यम वर्गीय महिला ने तो ये भी बताया कि लॉक डॉऊन उनके लिए खुशियां
ले कर आया । उनके पति ने शऱाब पीना बंद करके परिवार के साथ समय बिताना शुरू किया । अनेक महिलाओं ने नए कौशल सीखे जैसे मास्क बनाना , बागवानी करना आदि ।
कोविड काल के लॉक ड़ॉऊन में किया गया ये सर्वें भारत के सभी प्रांतों में महिलाओं की
समस्याओं और उनकी संकल्प शक्ति, विषम परिस्थियों से धैर्य और संयम के साथ निपटने की उनकी सूझबूझ का परिचय भी देता है । राष्ट्र सेविका समिति ने सर्वेक्षण की रिपोर्ट केंद्रीय महिला और बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी को सौंपी हैं । महिलाओं की अनुभव भरी ये कहानियां अब एक किताब का स्वरुप ले चुकी हैं और राष्ट्र सेविका समिति की तरफ से इसका विमोचन भी हो चूका है |